वीर सावरकर स्वंयभू वीर बनें , नाम बदलकर लिखी थी खुद की जीवनी

- 1926 में प्रकाशित सावरकर की जीवनी के लेखक चित्रगुप्त कोई ओर नहीं स्वंय सावरकर थे - डॉ रवीन्द्र वामन रामदास ने अपनी पुस्तक में किया था खुलासा

वीर सावरकर स्वंयभू वीर बनें , नाम बदलकर लिखी थी खुद की जीवनी
वीर सावरकर स्वंयभू वीर बनें , नाम बदलकर लिखी थी खुद की जीवनी

नई दिल्ली। हिंदुत्व के पैरोकारों ने रविवार को देशभर में वीर सावरकर जयंति मनाई और उनकी प्रशंसा के कसीदे पढ़ते हुए उन्हे वीर, साहसी, नायक जैसे शब्दों से महामंडित किया। लेकिन मीडिया में प्रकाशित लेख में खुलासा हुआ है कि वीर सावरकर ने अपनी जीवनी को नाम बदलकर लिखा और उसमें स्वयं को नायक घोषित किया। लेख में इस बात को साक्ष्य के साथ दिया गया है। ‘द लाइफ ऑफ बैरिस्टर सावरकर’ विनायक दामोदर सावरकर की पहली जीवनी थी। दिसंबर 1926 में प्रकाशित इस पुस्तक पर जीवनीकार का नाम चित्रगुप्त लिखा था। यह जीवनी मद्रास के.जी . पॉल एंड कम्पनी पब्लिशर से छपी थी।
पुस्तक में सावरकर को उनके साहस के लिए महिमामंडित किया गया था और उन्हें एक नायक बताया गया था। सावरकर की मृत्यु के दो दशक बाद सावरकर के लेखन के आधिकारिक प्रकाशक ‘वीर सावरकर प्रकाशन’ ने 1987 में इस पुस्तक के दूसरे संस्करण का विमोचन किया था। दूसरे संस्करण की प्रस्तावना डॉ रवींद्र वामन रामदास ने लिखी थी, जिसमें उन्होंने खुलासा किया था कि चित्रगुप्त कोई और नहीं बल्कि सावरकर ही हैं। ऐसे में प्रस्तावना से साबित होता है कि सावरकर ने अपनी पहली जीवन खुद लिखी थी। 
‘द लाइफ ऑफ बैरिस्टर सावरकर’ में सावरकर ने अपना महिमामंडन करते हुए लिखा है, सावरकर जन्मजात नायक हैं, वे उन लोगों से घृणा करते थे जिन्होंने परिणामों के डर से कर्तव्य से किनारा कर लिया।

सावरकर की संक्षिप्त जीवनी

हिंदुत्व की परिभाषा देने वाले विनायक दामोदर सावरकर का जन्म ब्रिटिश भारत के बम्बई प्रेसीडेंसी में 28 मई 1883 को हुआ था। उन्हें प्राय: स्वातन्त्र्यवीर और वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हालांकि एक वर्ग सावरकर को वीर कहे जाने का विरोध करता है। सावरकर ने नौ साल की उम्र में अपनी माता और 16 वर्ष की आयु में अपने पिता को खो दिया था। सावरकर का पालन पोषण उनके बड़े भाई गणेश ने की। उन्होंने मैट्रिक तक की पढ़ाई नासिक के शिवाजी हाईस्कूल और बी.ए. पुणे के फर्ग्युसन कालेज से की। आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन गए थे। युवावस्था में सावरकर अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति करना चाहते थे। उन्होंने लंदन में रहते हुए किताब लिखकर 1857 के सैनिक विद्रोह को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम घोषित किया था। इटली के क्रांतिकारी मैजिनी से प्रभावित सावरकर ने उनकी जीवनी का मराठी में अनुवाद किया था। सावरकर को अंग्रेज अफसर जैक्सन की हत्या के षडयंत्र में शामिल होने के लिए अंडमान की सेल्यूलर जेल की सजा मिली थी।सावरकर कुल 9 साल 10 महीने सेल्यूलर जेल रहे। वहां से निकलने के लिए उन्होंने अंग्रेजों को छह बार माफीनामा लिखा था। वहां से निकलने के बाद अंग्रेजों ने उन्हें  महाराष्ट्र के रतनागिरी और यरवदा जेल में रखा। वहीं उन्होंने ‘हिन्दुत्व’ नामक किताब लिखी। जेल से आजाद होने के बाद सावरकर लगभग आजादी की लड़ाई से विमुख रहे। आजादी के बाद वह गांधी हत्या मामले में आरोपी भी रहे। हालांकि साक्ष्य के अभाव में उन्हें सजा नहीं हो पायी थी। 26 फरवरी 1966 को विनायक दामोदर सावरकर ने अंतिम सांस ली थी।