क्या देश के 80 करोड़ लोग पीएम मोदी के "फोर्टिफाइड राइस" को बिना सोचे-समझे थोपने की कीमत चुकाएंगे?

पवन खेड़ा, चेयमैन, मीडिया एवं प्रचार (AICC संचार विभाग) द्वारा जारी बयान-  असफल पायलट प्रोजेक्ट्स के बावजूद, विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों द्वारा कई चेतावनियों के बावजूद, FSSAI और NITI AAYOG के सलाहकारों द्वारा बार-बार चेतावनी देने के बावजूद, मोदी सरकार ने खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत फोर्टिफाइड चावल क्यों शुरू किया? क्या मोदी सरकार किसी विदेशी संगठन से आसक्त हो गई थी या इसमें कोई निहित स्वार्थ शामिल है ?

क्या देश के 80 करोड़ लोग पीएम मोदी के "फोर्टिफाइड राइस" को बिना सोचे-समझे थोपने की कीमत चुकाएंगे?
क्या देश के 80 करोड़ लोग पीएम मोदी के "फोर्टिफाइड राइस" को बिना सोचे-समझे थोपने की कीमत चुकाएंगे?

नई दिल्ली: 15 अगस्त 2021 को लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने एक असामान्य घोषणा की- "गरीब महिलाओं, गरीब बच्चों में कुपोषण और जरूरी पौष्टिक पदार्थों की कमी, उनके विकास में बड़ी बाधा बनती है। इसे देखते हुए ये तय किया गया है कि सरकार अपनी अलग-अलग योजनाओं के तहत जो चावल गरीबों को देती है, उसे fortify करेगी। गरीबों को पोषणयुक्त चावल देगी। राशन की दुकान पर मिलने वाला चावल हो, मिड-डे मील में बालकों को मिलने वाला चावल हो, वर्ष 2024 तक हर योजना के माध्यम से मिलने वाला चावल fortify कर दिया जाएगा।"

इसका क्या सन्दर्भ है और कैसे पर्दे के पीछे चीजें सामने आईं:-

घोषणा के तीन दिन बाद, नीति आयोग के अधिकारियों ने चावल के फोर्टिफिकेशन को सार्वभौमिक बनाने के लिए एक योजना तैयार करना शुरु किया। 29 नवंबर 202 को एक फाइल नोटिंग में नीति आयोग के कृषि सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा-
"कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों ने बच्चों के स्वास्थ्य पर आयरन फोर्टिफाइड चावल के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की है। डीजी (इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च) द्वारा भी इसका उल्लेख किया गया था.. इसलिए, इसे आगे बढ़ाने से पहले मानव स्वास्थ्य पर चावल के फोर्टिफिकेशन के प्रभाव पर विशेषज्ञों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ परामर्श की आवश्यकता है। किसी भी मामले में, इस तरह का हस्तक्षेप अल्पावधि के लिए ही होना चाहिए। इसका मतलब यह था कि यहां तक कि आईसीएमआर जो की भारत के प्रमुख चिकित्सा अनुसंधान केंद्र है, उसको भी पीडीएस के तहत फोर्टिफाइड चावल को रोल आउट करने की प्रभावशीलता के बारे में गंभीर संदेह था ।
पोषण पर नीति आयोग के राष्ट्रीय तकनीकी बोर्ड की सदस्य, प्रोफेसर डॉ. अनुरा कुरपड ने उन बच्चों में सीरम फेरिटिन के स्तर में वृद्धि देखी, जिन्हें आयरन-फोर्टिफाइड चावल दिया गया था। सीरम फेरिटिन मधुमेह के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। डॉ कुरपड सार्वजनिक रूप से आयरन फोर्टिफाइड चावल के जोखिमों के बारे में चेतावनी देते रहे हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मोदी सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत राष्ट्रव्यापी पीडीएस में जिस फोर्टिफाइड चावल की भूमिका निभा रही है, उसमें 20mg आयरन है।
भव्य योजनाओं को बढ़ावा देना नहीं है। फोर्टिफाइड चावल और अन्य खाद्य पदार्थों (गेहूं, दूध, तेल आदि) को रोलआउट करने की यह भव्य योजना 2016 में कैनकुन, मैक्सिको में एक सम्मेलन के साथ शुरू हुई, जहां रॉयल डीएसएम और कुछ वैश्विक द्वारा आयोजित चावल फोर्टिफिकेशन पर एक संगोष्ठी में भाग लेने के लिए अंतर्राष्ट्रीय NGO संस्थाएं एकत्रित हुई गैर सरकारी संगठन। क्या यह संयोग है कि इस सम्मेलन के ठीक एक महीने बाद, FSSAI ने फोर्टिफिकेशन जागरूकता के लिए इस 'रिसोर्स हब' (वेबसाइट- https://fortification. fssai.gov.in) की शुरुआत की, जबकि उस दावे का समर्थन करने वाले शायद ही कोई अध्ययन थे कि ये कुपोषण से लड़ेगा। वास्तव में 2004 में प्रोफेसर डॉ. अनुरा कुरपड द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया था कि फोर्टिफाइड चावल सीधे मधुमेह के खतरे में वृद्धि से जुड़ा हुआ है। भारत में पहले से ही दुनिया में मधुमेह रोगियों की कुल संख्या का 17% हिस्सा है और इसे दुनिया की "मधुमेह राजधानी" के रूप में जाना जाता है।

. Royal DSM समूह के सहयोगियों में से एक है GAIN-Global Alliance For Improved Nutrition का कॉर्पोरेट हितों का समर्थन करने का इतिहास रहा है। 2013 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समूह द्वारा स्थापित खाद्य कंपनियों के व्यापार गठबंधन नेटवर्क पर एक एनजीओ के रूप में GAIN को मान्यता देने से इनकार कर दिया। एक अन्य तकनीक केंद्रित सार्वजनिक स्वास्थ्य गैर-लाभकारी संस्था PATH- जिसे Royal DSM द्वारा फंड किया गया था, ने FSSAI को अपने मानकों और यहां तक कि फोर्टिफिकेशन 'रेसोर्स हब' के लिए हैंडआउट्स की कल्पना करने में मदद की।

• मोदी सरकार की फोर्टिफिकेशन नियमावली लगभग एक कॉपी है, जिसमें दस्तावेजों के कुछ हिस्सों और PATH और GAIN के हैंडआउट्स का उपयोग करके साहित्यिक चोरी की गई है। तब FSSAI के सीईओ पवन अग्रवाल ने PATH को श्रेय देते हुए कहा, "मैं PATH के समर्थन की सराहना करता हूं, जिन्होंने इस तकनीकी मैनुअल के विकास में सहायता की है। महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी सरकार के खाद्य विभाग ने भी अपने दिशानिर्देशों के लिए PATH और GAIN के टूलकिट के कुछ हिस्से उठा लिए हैं। इसने अपने दस्तावेज़ में PATH के "अल्ट्रा राइस " के संदर्भों को मिटाकर टेस्ट को पैच-राइट किया।

• फोर्टिफाइड चावल जो कि आयरन से लैस है, उसका सेवन जिन्हे थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया और TB जैसी बीमारियां हैं उन्हें नहीं करना चाहिए। इन बीमारियों से पीड़ित लोगों को मेडिकल रूप से आयरन नहीं दिया जाता है। ये रोग गरीबों में व्याप्त हैं, जिन्हें फोर्टिफाइड चावल के लाभार्थी बनाया जा रहा है।

एक जिम्मेदार राजनीतिक दल के रूप में हम मोदी सरकार से कुछ महत्वपूर्ण सवाल पूछते हैं:-

1. प्रधानमंत्री मोदी ने फोर्टिफिकेशन पर स्वतंत्र शोध अध्ययनों या विश्व स्तर पर किये गए अध्ययनों के परिणामों का पता क्यों नहीं लगाया और क्यों बिना समझे बूझे भारत के 80 करोड़ गरीबों को प्रभावित करने वाली एक राष्ट्रव्यापी योजना शुरू की? 80 करोड़ गरीब भारतीयों के स्वास्थ्य और जीवन को जोखिम में डालने की इतनी जल्दी क्या थी? क्या यह मोदी सरकार की गरीब विरोधी मानसिकता को नहीं दर्शाता है?

2. मोदी सरकार के खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और नियामक FSSAI ने अपनी आंतरिक चेतावनियों को क्यों नहीं सुना, जिन्हें विशेषज्ञों और सलाहकारों द्वारा बार-बार रेखांकित किया गया था? उन्होंने नीति आयोग के सदस्यों की बात क्यों नहीं सुनी? उन्होंने अपने ही वित्त मंत्रालय के अधीन व्यय विभाग की बात क्यों नहीं सुनी? किस बात ने उन्हें पहले वैज्ञानिक तंत्र से तथ्यों का पता लगाने और फिर इतना बड़ा फैसला लेने से रोका?

3. Royal DSM और मोदी सरकार के बीच क्या संबंध है? इसके क्षेत्रीय उपाध्यक्ष, फ़्राँस्वा शेफ़लर ने पीएम मोदी के प्रति अपनी कृतज्ञता क्यों व्यक्त की? क्या FSSAI के फोर्टिफिकेशन 'रिसोर्स हब' और करोड़ों खर्च करने वाले कई विज्ञापन अभियानों की पूरी अवधारणा, मोदी सरकार और एक MNC समूह के बीच एक सौदा या एक मुआवज़ा था?
'मास्टरस्ट्रोक'- पीएम मोदी के फैसलों से जुड़ा शब्द है! खासकर मीडिया के एक वर्ग द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।

हम जानते हैं कि जब इस तरह के 'मास्टरस्ट्रोक की घोषणा की जाती है तो क्या होता है।

हम जानते हैं कि 2016 में जब अचानक नोटबंदी हुई तो क्या हुआ और इसने गरीबों पर क्या कहर ढाया।

हम जानते हैं कि जब अचानक से कोविड लॉकडाउन की घोषणा की गई तो क्या हुआ और गरीब प्रवासियों को किस तरह से परेशानी का सामना करना पड़ा।

हम जानते हैं कि 2000 रुपये के नोट की नोटबंदी 2.0 के साथ क्या हो रहा है जिसकी घोषणा कुछ दिन पहले की गई थी।भारत की जनता भुगत रही है।